ग़ज़ल Continues..

इश्क हम दोनों का मुकम्मल कर दे
उसे थोडा , मुझे पुरा पागल कर दे ॥

दिल है कि मानता नहीं बात अक्ल की
ज़रा सी आहट पे मन मे हलचल कर दे॥

दिल की आरज़ू हैं उनसे गुफ़्तगू करने की
निगाहों के इशारों से उनको घायल कर दे ॥

चॉंद है चॉंदनी भी और साथ है रात की
बस मेरी साँसों को जरा संदल कर दे  ॥

“सुर” लिखतें है शायर बातें अजब इश्क़ की
बस तिरे तसव्वुर को तेरी ग़ज़ल कर दे ॥

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