कुछ यूं साल गुजर गया

"साल गुजरता गया"


तो कुछ यूं मेरा साल गुजरता गया

कुछ उधेड़बुन में जीता रहा 

हर महीने नया सबक मुझे सिखाता गया

कहा ना यूं ही मेरा साल गुजरता गया


कभी सड़को पर मुझे भगाता रहा 

कभी किसी कोने में दुबकाता गया 

कभी भीड़ में मुझे हँसाता गया 

कभी अकेले में मुझे रुलाता गया


कभी दोस्तों की महफिल जमाता गया 

कभी दोस्तो का साथ छुड़वाता गया 

कभी नौकरी से वो थकाता रहा 

कभी नौकरी से छोकरी मिलवाता गया


कभी मुझे ही वो हराता गया

कभी मुझसे ही मुझे लड़वाता गया 

था नहीं कुछ मैं या सब कुछ में मैं ही था

इस बात में मुझे उलझाता गया

कहा ना यूं ही मेरा साल गुजरता गया


कभी धुंध में वो रोशनी बनता गया 

कभी सूरज में वो परछाई बनता गया

कभी भीड़ में वो तन्हा करता गया 


कभी जीवन संगिनी से मिलाता गया

 कभी जीवन के सपनों ने दूर करता गया

 कभी था नही वैसा मुझे बनाता गया 

कहा ना मेरा साल यूं ही गुजरता गया।


कभी पैसों की बारिश करता गया 

कभी हाथ फैलाने को मजबूर करता गया 

कभी चौड़ ले सीना फुलाता गया

कभी कोने में चुपके से छुपाता गया


कभी जो ना हो मुमकिन वो काम कराता गया 

कभी जो था मुमकिन उसे ही छीनता गया 

कभी मुझे होंसलो दे उडाता गया 

कभी मेरे  बढ़ते कदमों को रोकता गया 

कहा ना कुछ यूँ ही मेरा साल गुजरता गया


कभी नए दोस्तो से मिलवाता गया

कभी सच्चे दोस्तो से रिश्ते तुडवाता गया

कभी खुशी के ढोल बजवाता गया

कभी बेरंग सा वो अरमान जगाता गया


कहता गया जो है वो तू ही है अभिषेक 

अच्छा भी तू बुरा भी तू

 मैं तो बस तारीखों का एक वाकया हूं

ऐसे आया भी और ऐसे ही में गुजरता गया 


कहा ना एक और उम्र का साल 

कुछ ऐसे गुजरता गया ।


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