मेरे जज़्बात

मां 

मां के हाथ का जादू
खाने को और स्वाद बना देता है
मां का आशीर्वाद 
जीवन का हर अवसाद मिटा देता है

चक्की वही, पाट वही है
दाने वही हैं अनाज के
पिस्ता हर दाना एक तरह से
कल के बने हों या आज के
गूंथ के जब मां बनाती है आटा
खुशबू सी घुल जाती है
मां का स्पर्श पाते ही देखो
स्वाद की खिड़कियां खुल जाती हैं

मंद मंद जाने क्यों वो 
माटी का चूल्हा मुस्कुराता है
उपलों की प्यारी सी आग में
हर दर्द झुलस सा जाता है
मां का अपने परिवार के लिए
मैने समर्पण देखा है
सब खुश रहें,इसके लिए
मां का जीवन अर्पण देखा है
सबके बाद ही,खुद का खाना
 उसको,आफताब बना देता है

गैस का हो या हो चूल्हा माटी का 
ममता मां की होती है सच्ची
वक्त बदला और बदल सब ही गया
पर मां सबकी होती है अच्छी
दो निवाले जब चले जाएं
संतान के पेट में
तब ही संतुष्टि होती है
समझना मां के पेट में
बच्चों को अपने खिलाके
मां धन्य समझती अपने आप को
मां की सेवा है मिटा देती
जीवन में किए हर पाप को
मां के चरणों का प्रताप देखो
हर मायूसी, हर संताप हरा देता है

डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र

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