सयुक्त परिवार के विघटन के कारना

**सयुंक्त परिवार के विघटन के कुछ  कारण  


                        समाज , परिवार मे एक प्रतिष्ठा  रखने की होड़ ने हमें पश्चिमी सभ्यता की जीवनशैली जीने पर मजबूर कर दिया है ।बच्चे दादा, दादी का प्यार तो जानते ही नहीं कभी उनको देखा ही नहीं, संयुक्त परिवार तो अब देखने को नहीं मिलते है। 


       आज के परिवेश में संस्कार शब्द ही दम तोड़ रहा है,  संस्कार अब रहे ही नही ।अपनी संस्कृति मे सोलाह संस्कार है। वो आज की पीढ़ी को ज्ञात भी नही है  और नाही वो समझना चाहते है । संस्कार  संयुक्त परिवार का मजबूत स्तंभ हुआ करता था |

     आज के  दौर में   हम दो हमारे दो की परम्पराओं का विकास दिन दूनी रात चौगुनी की तरह हो रहा है, और कही  तो हम दो हमारा एक यह है । माता पिता वोट वन रहा है, एकाकी जीवन ज्ञापन करने को मजबूर है। वृद्धाश्रम के शरणागत वन रहे है, ऊसी तरह संयुक्त परिवार की प्रथा इतिहास के पन्नों में सजने को तैयार हो रहा है | 

  शिष्टाचार धर्म के प्रति आसक्ति क्षीण सी हो रही है,आज की पीढ़ी को पाश्चात्य संस्कृति चाहिए उन्हे अपनी संस्कृति, परम्परागत तीज त्योहार अपनाने मे शर्म आती है ।  परिवार की स्थिति दीन हीन हो रही है, गाँव से शहर की ओर एकल परिवार का पलायन हो रहा है,  यहां तक तो  ठीक था लेकिन  अब  सभी को  मेट्रो सिटी होना।माता पिता घर परिवार गाँव का सजावट वन रहा है, सयुंक्त परिवार की प्रथा अपने अस्तित्व की ओर टकटकी लगा रहा है, सयुंक्त परिवार का अस्तित्व प्रश्न चिन्ह बन गया है|

     एक तरफ जहाँ प्री  रीलेशनशिप  की परम्परा पाव पसार रहा है, शहरी परिवेश में नव युवाओं को दुत्कारा नही जा रहा है, माता पिता लाचार  है,  यह परिस्थिति के जिम्मेदार वह स्वयं है । उन्होंने आजादी देकर अपने पैरो पर  कुल्हाड़ी  मारी है। बच्चो को  सामाजिक कार्यों में  या परिवार के  कार्यक्रम में सम्मिलित  किया ही नहीं है ।उन्हे परिवार की एहमियत कभी बताई नहीं है। सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई और कहा तुझे बड़ा होकर नौकरी करना है । फिर संयुक्त परिवार के अस्तित्व का सवाल  ही कहाँ ऊठ रहा है|

     गाँव ,समाज , परिवार से नाता टूट रहा है, ऊनके सभ्यता संस्कृति का सवाल  कहाँ ऊठ रहा है|

         पुराने ज़माने में देश को भी एक परिवार समझा जाता था, आज वही देश एक परिवार माना जाता है, भला फिर घर का कोई कयों परिवार समझेगा|

         आज संयुक्त परिवार सिर्फ संपत्ति के लिए हक के नाम पर आइ. सी. यूँ. में दम तोड़ता नज़र आ रहा है|

       यह सारा दोष कुछ वर्ष पहले हमलोगों का है, संयुक्त परिवार के विघटन के हमलोग जिम्मेदार है, जब तन मन धन से ओत प्रोत थे तब शहर जाकर अपने बच्चों को अपने माता पिता से दूर रखा था, अब सेवानिवृत्ति के बाद संयुक्त परिवार की याद आने लगी|

           आज 0.001 प्रतिशत ही  बच गऐ हैं जो संयुक्त परिवार की परम्परा का र्निवाहन खुशी पुर्वक कर रहे हैं, ऊनकी जिंदगी भी सुख चैन आराम से कट रही है, अगल बगल के गाँव समाज के लिए मिशाल वन रहे हैं, उनके परिवार के बच्चे भी ऊच्चे पद प्रतिष्ठा पाकर भी घर परिवार को नहीं भूल रहे हैं |

          क्षमाप्रार्थी हूँ किसी को व्यक्तिगत दुःख या आहत पहुचाने के लिए  यह आलेख नहीं लिखा गया है, वर्तमान परिवेश संस्कार पर एक आवाज ऊठाते हुए संयुक्त परिवार के विघटन के कारणों को लिखने का प्रयास  किया  है|


  स्वलिखित.  एव मौलिक             

  अनिता ईश्वरदयाल मंत्री अमरावती 9420240268*

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