*यही काफी है...!*

*यही काफी है...!*
क्या इजहार और इकरार यही प्यार है...? 
तो फिर जो बिन बोले आंखों से झलके वो क्या है...?
हा माना की इजहार नहीं हुआ है तो बिन वजह तूझे देखने को तरसना वो क्या है...?
माना की ये मुनकिन नहीं है पर फिर भी दिल का तूझपे ही आके अटकना ये क्या है...?
लाखों की भीड़ में इन लबों पे तेरे नाम का ही जिक्र होना ये क्या है...?
इस रूह को चाहे कितनी भी तसल्ली दी जाए लेकिन ‌इसे सिर्फ तेरी ही फिक्र होना ये क्या है...?
बंधन और ये रिश्ते क्या होते है मूझे नही पता लेकिन बिना रिश्ते के हर रिश्ता निभाना ये क्या ‌है...? 
ये अब वजह है या बेवजह क्या फर्क पडता है बस यहीं सूकुन मिला है यही काफी है...!

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